रविवार, 23 अप्रैल 2017

रघुवंश : अज विलाप में पुष्प और वृक्ष सहकार

कालिदास कृत 'रघुवंश' में रानी इन्दुमति की आकस्मिक मृत्यु पर राजा अज का विलाप एक महत् साहित्यिक उपलब्धि है। तत्कालीन जीवन में मनोरञ्जन हेतु वृक्षों के साथ विविध क्रीड़ाओं के उल्लेख भी इस प्रसंग में हुये हैं।

आधुनिक जीवन की त्रासदी कृत्रिम पर्यावरणीय चेतना है। वृक्षों के साथ सहज उत्सवी सहकार अभी पीढ़ी भर पहले तक किसी न किसी रूप में था जो कि अब समाप्त हो चुका है। कृत्रिमता केवल हल्ला गुल्ला या अस्थायी अप्रभावी अभियानों की ही जननी हो सकती है जबकि सहज जुड़ाव स्थायित्त्व देता है।
अस्तु।

देखते हैं कि कैसे वृक्ष आमोद प्रमोद के अङ्ग होते हुये सहचर मित्र भी थे: 
 मिथुनम् परिकल्पितम् त्वया सहकारः फलिनी च नन्विमौ।
अविधाय विवाहसत्क्रियामनयोर्गम्यत इत्यसांप्रतम्॥ ८-६१
कुसुमम् कृतदोहदस्त्वया यदशोकोऽयमुदीरयिष्यति।
अलकाभरणम् कथम् नु तत्तव नेष्यामि निवापमाल्यताम्॥ ८-६२
स्मरतेव सशब्दनूपुरम् चरणानुग्रहमन्यदुर्लभम्।
अमुना कुसुमाश्रुवर्षिणा त्वमशोकेन सुगात्रि शोच्यसे॥ ८-६३
तव निःश्वसितानुकारिभिर्बकुलैरर्धचिताम् समम् मया।
असमाप्य विलासमेखलाम् किमिदम् किन्नरकण्ठि सुप्यते॥ ८-६४

विलाप करते हुये अज कहते हैं:

"प्रिये! तुमने आम और प्रियङ्गु के मिथुन सहकार की परिकल्पना कर योजनायें बनाई थीं। बिना उनका विवाह पूर्ण किये कैसे संसार त्याग सकती हो? अनुचित है यह!"

"तुम्हारे द्वारा दोहद किये जाने से ही यह अशोक फूला है जिसके पुष्प तुम्हारी अलकों की इन दिनों सज्जा रहे हैं, उन्हीं पुष्पों से मैं तुम्हारी चिता कैसे सजा सकता हूँ?"

"अन्य वृक्षों को दुर्लभ, चरण प्रहार द्वारा पुष्पित किये जाने के तुम्हारे अनुग्रह और तुम्हारे नूपुरों से होने वाले शब्दों की स्मृति में यह अशोक वृक्ष भी पुष्प रूपी आँसू बरसाते शोक कर रहा है।"

"अपने नि:श्वास समान सुगन्धि वाले वकुल फूलों की निज धारण हेतु जो मेखला तुमने मेरे साथ बनानी प्रारम्भ की थी, वह अभी पूरी नहीं हुई है। हे किन्नरों के समान मधुर कण्ठ वाली! अपना काम यूँ असमाप्त छोड़ तुम कैसे आँखें मूँद सकती हो!" 

कालजयी कवि अपने वर्णन में अन्य स्वस्थ और कल्याणकारी वृत्तियों को भी स्थान देता चलता है ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी चेतना और जीवंतता बनीं रहें। इस मार्मिक प्रकरण में इस अंश को स्थान दे कर कालिदास ने उसी धर्म का निर्वाह किया है।
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वृक्ष दोहद की मान्यतायें बहुत पुरानी रही हैं कि तरुणियों द्वारा कतिपय क्रीड़ा अनुष्ठानों जैसे पाद प्रहार, जड़ पर मदिरा की कुल्ली आदि
के किये जाने पर ही कुछ वृक्ष पुष्पित होते हैं।
एक तरह से देखें तो यह स्त्री के मातृत्त्व गुण का महिमामण्डन तो है ही, उन्हें मनोरञ्जन और विहार के लिये स्वतंत्र समय देने की युक्ति भी है। 
वृक्ष दोहद पर हिमांशु जी ने अपने ब्लॉग पर विस्तृत शृंखला लिखी है, जिसे यहाँ देखा जा सकता है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुकमा नक्सली हमला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. वाह, फूलों और वृक्षों के साथ कैसे आत्मीयता ! कालिदास को शत शत नमन !

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  3. आधुनिक जीवन की त्रासदी कृत्रिम पर्यावरणीय चेतना तो है ही साथ ही भौतिकवादी चेतना की कृत्रिमता हमारे पर्यावरण को भी कृत्रिम बना रहा है |

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