शनिवार, 13 मार्च 2010

किस क़ुफ्र की सजा मुझे दी तुमने ज़िहादी !

zihad
लाहौर बम धमाकों में घायल 18 महीने का ज़ाहिद शाहिद
चित्र साभार: इंडियन एक्सप्रेस 
क़ाफिर नहीं, ईमान भी नहीं अल्लाताला पर -
किस क़ुफ्र की सजा मुझे दी तुमने ज़िहादी ! 
अगली बार बम फोड़ो तो खयाल रखना ज़िहादी
क़ाफिर मरें, ईमानदार मरें, घायल हों बेईमान
पर न घायल हों यूँ चन्द महीनों की साँसें ।
मर जाएगा कुछ, हो जाएगा सीने में दफन
याद आएगा हमेशा माँ की लोरियों पर
याद आएगा हमेशा माशूक की बोलियों पर
एक इंसान जो दफन हुआ अस्पताल की गोद में
बस याद आएगा ।
जवान हो जब मैं उठाऊँगा ए के 47
वो: जो याद आएगा - न क़ाफिर था न ईमान वाला
मारा गया मर गया बस इसलिए कि वह कुछ न था
बचता वही है जो क़ाफिर हो या ईमान वाला
बचने के लिए कुछ होना जरूरी है,
बस इंसान होना नाकाफी है।

27 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut hi dukhad aur nindneeya.. kash koi Khuda koi bhagwan hota jo in durdanton ko sabak sikhata.
    lekin ye jankar ki koi nahin aayega madad ko.. tab bhi hum kuchh nahin kar pa rahe..

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  2. अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति है यह ...सच तो यह है कि आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता और न ईमान हीं..

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  3. रवीन्द्र जी से सहमत नहीं..
    क्यों मुस्लिम ही आतंकवादी बन रहे हैं ९९.९९९९९९९९९९९९९९९९ मामलों में..
    उन्हें शिक्षा-दीक्षा ही इस तरह की दी जा रही है..
    भारत में हो सकता है कि इनकी देखा-देखी और लोग भी बन जायें..
    मजहब बमों और गोलियों का नहीं होता..

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  4. क़ुफ्र उसने नहीं किया, किया है उसके मुल्क ने. जिसने एक भस्मासुर पैदा किया जिससे वो क़ाफिरों को मारना चाहता था. पर भस्मासुर और उसके जनक भूल जाते हैं, भस्मासुर की परणति. लाहौर हो या पेशावर वहाँ भस्मासुर अब बेकाबू है और मौत का खेल खेल रहा है. अभी भी समय है कि इसके लिये जिम्मेवार लोग जाग जायें और जानें कि भस्मासुर ज़िहादी क़ाफिर और मोमिन में फर्क नहीं करता.

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  5. मूर्खता?...या अज्ञानता?.... या कायरता? इन्हीं में से कुछ है. रवीन्द्र प्रभात की टीप की बात कर रहा हूं.

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  6. बस याद आएगा ।
    जवान हो जब मैं उठाऊँगा ए के 47
    वो: जो याद आएगा - न क़ाफिर था न ईमान वाला
    मारा गया मर गया बस इसलिए कि वह कुछ न था
    बचता वही है जो क़ाफिर हो या ईमान वाला
    बचने के लिए कुछ होना जरूरी है,
    बस इंसान होना नाकाफी है।
    अगर जेहादी इमान वाला होता तो जेहादी क्यों बनता। इन्सानियत छोड कर ही वो कातिल बनता है ।प्रभात जी ने सही कहा है। धन्यवाद्

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  7. सही है इस बच्चे का क्या कसूर और किसी भी इंसान का क्या कसूर ?

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  8. बस इंसान होना नाकाफ़ी है...

    इंसान का काफ़ी होना ही लाज़िमी है...
    इंसानियत के पक्ष में अच्छे शब्द...

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  9. बेहद दुःखद,अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति ।

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  10. हद है! सलीम खान जैसे ये बेगैरत इन्सान इसे भी मीडिया क्रियशन बता रहे हैं...लानत है ऎसे लोगों पर और इनकी धार्मिकता पर!

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  11. बस इंसान होना नाकाफी है....लोग पहले इंसान तो बनें...

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  12. "बचने के लिए कुछ होना जरूरी है,
    बस इंसान होना नाकाफी है।"एक की यह व्यथा,


    इधर यह कथा,
    MEADIA CREATION! Its Media Creation my dear.
    गजब सफ़ाई।

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  13. ये ज़ेहादी नहीं फ़सादी हैं
    खुद अपने मुल्क की बरबादी हैं
    दूर से हाथ सेंकने वाले
    इन हवादिस के बड़े आदी हैं

    आपने बहुत सही कहा कि "बस इंसान होना नाकाफी है।"

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  14. मार्मिक..बेकसूर ही मारे जाते हैं.

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  15. बम फूटने के दस मिनट के भीतर वहाँ के आई.जी. (पुलिस) ने बी.बी.सी. को बता दिया कि इन बम धमाकों में भारतीय खुफ़िया एजेन्सी ‘रॉ’ का हाथ है। इन मूर्खों को कौन समझाए...?

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  16. अत्यंत दुखद, मानवता के इन दुश्मनों की आँखें इंसानियत को कहाँ देख पाती हैं।

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  17. विस्फोट से मारे जाने वाले ये मासूम ...इनके अपनों का दर्द दिखता तो है ....
    जो बिना किसी घातक हथियार के छलनी हो जाते हैं ...??
    मार्मिक अभिव्यक्ति ....!!

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  18. @saleem khan

    aap kab tak aise khaufnak kartuton ko media creation keh kar justify karne ki koshish karte rahengey!


    sachchai ko bahut der tak jhuthlaya nahi ja sakta.......


    poori duniya dekh rahi hai ye sab......

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  19. सच ही कहा है शहरोज ने...आतंकवादियों का क्या धर्म...ऐसे बच्चे भी उनका शिकार बनते हैं।

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  20. इसे पढ़ना क्यों रह गया था !
    मार्मिक !

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  21. मार्मिक कविता. यह सब दुखद है, शर्मनाक है.

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